04 May 2006

शब्द प्राणायाम पुस्तक

शब्द प्राणायाम पुस्तक के रचनाकार हरदा म०प्र० के निवासी श्री रमेश कुमार भद्रावले हैं।यह हिन्दी कविताओं पहली पुस्तक है, जो इण्टरनेट पर पहली बार सचित्र अपलोड की गई है। इस पुस्तक में रचनाकार ने छोटी-छोटी दैनिक जीवन की अनुभूतियों को अपनी क्षणिकाओं में लिपिबद्ध किया है। बैंक में एक अधिकारी के रूप में कार्य करते हुए श्री भद्रावले जी ने ये रचनाएँ लिखी हैं जो पाठक को पढ़ते समय योग की भाँति सहज स्थिति में पहुँचाने का कार्य करती हैं। रचनाओं के साथ श्री बी.लाल द्वारा बनाए गए चित्र इन रचनाओं को अभिव्यक्ति प्रदान करने में बहुत सहयोग करते हैं। इन रचनाओं को पढ़कर वर्तमान तनाव के माहौल में भी आप कुछ क्षण के लिए सहजता की अनुभूति अवश्य करेंगे।
-डा० जगदीश व्योम


* आज का दिन मुझ हिन्दी प्रेमी के लिए सुखद रहा । इसके पीछे डॉ॰ जगदीश व्योम जी की मेहनत से 'शब्द प्राणायाम कविताएँ' से गुजरने को मैं क्यों न मानूं । रचनाकार ने अपनी नुकीली क्षणिकाओं के माध्यम से समाज की सारी विकृतियों की ओर इशारा किया है । रचनाकार की दृष्टि में वैविध्यता साफ़-साफ़ देखी जा सकती है । दृष्टि में कई कोणों का होना रचनाकार के अनुभव संसार में विविधता का भी प्रमाण है । सबसे बड़ी बात यहाँ क्षणिकाएं किसी अख़बार की फीलर्स की तरह नहीं रचे गये हैं । यहाँ उनमें भाषा की धार भी है । शाब्दिक कला कौशल भी है । इसे हम उनकी अभिव्यक्ति का चातुर्य भी कह सकते हैं । यह अलग बात है कि समग्र रचनाओं का मूल टोन सधा हुआ है किन्तु कहीं-कहीं चलताऊ भाषा के कारण साहित्य की आत्मा के प्रति न्याय नहीं माना जा सकता है । शायद यहीं कारण रहा है कि हमारे साहित्य मनीषियों ने क्षणिकाओं को शुरू-शुरू में एक पृथक विधा के रूप में मान्यता नहीं दी थी । जो आज स्थापित विधा है । रचनाकार को इसलिए भी बधाई कि वे अब वैश्विक जगत में पढ़े जायेंगे । मेरी दृष्टि में यह हिन्दी के विकास में (खासकर अंतरजाल के माध्यम से)मील का पत्थर जैसा है क्योंकि यह कृति प्रथम-प्रथम है जो संपूर्णतः अंतरजाल पर है । रचनाकार के साथ-साथ चित्रकार को मैं धन्यवाद देना चाहूँगा कि उनकी तूलिका ने यहाँ कमाल कर दिखाया है । कई बार होता यह कि जिसे शब्द नहीं खोल पाते उसे छवियाँ खोल देती हैं । इस प्रस्तुति से जुड़े सभी मित्रों को मैं छत्तीसगढ़ राज्य की संस्था 'सृजन-सम्मान' की ओर से भी बधाई देना चाहूंगा कि उन्होने हिन्दी की ज़मीन को मजबूत करने में अपनी ऊर्जा को रेखांकित की है ।
-जयप्रकाश मानस/ सृजन-सम्मान, छत्तीसगढ
*******

मुखपृष्ठ पर पहुँचें

11 March 2006

विद्वानो की समीक्षात्मक टिप्पणी

कुछ पाठकीय प्रतिक्रयाएँ
************

प्रिय भाई रमेश,
आपने एक राष्ट्रीयकृत बैंक(देना बैंक) के शाखा प्रंबधक के पद को छोड़कर साहित्य के क्षेत्र में कदम रखा है। भगवान आपको बहुत-बहुत प्रगति देवें। मेरी ओर से आपको अनेक-अनेक शुभ-कामनाएँ एवं बार-बार बधाई।
-अशोक चक्रधर
***********


यह किताब सभी को सुख दे तथा आलोचक मित्र इस किताब को उसी सरलता और सहज भाव से अपना स्नेह दें, जिस सरलता और सहज भाव से रमेशजी ने इसे प्रस्तुत किया है। यही कामना, यही शुभकामना।
- सुभाष काबरा, मुम्बई
********
आपका प्रथम क्षणिका संग्रह अत्यनत प्रशंसनीय है। जैसे प्रणायाम शरीर को स्वस्थ व ऊर्जावान बनाता है वैसे ही क्षणिका संग्रह 'शब्द प्राणायाम` सुधी पाठकों के मानसिक स्वास्थय में नवशक्ति संचार करता है।
श्री कमल पटेल (राजस्व मंत्री, मध्य प्रदेश शासन)
********
क्षणिकाएँ पठनीय हैं, प्रभावी हैं, सुन्दर सजधज तथा व्यंग्य चित्रों से पंक्तियों को आलोकित करती क्षणिकाओं हेतु बधाई।
चन्द्रसेन विराट
*******
क्षणिकाएँ आम आदमी के बहुत निकट हैं। 'पानी की एक बूँद` ने बहुत प्रभावित किया।
प्रेम जनमेजय (दिल्ली)
*******

क्षणिकाओं के माध्यम से आम जन की पीड़ा को आपने अभिव्यक्ति दी है। आपका यह तेवर बना रहे।
राजेन्द्र परदेसी (लखनऊ)
*******
कुछ मौलिक कल्पना, कुछ नए प्रतीक और सादृश्य आपकी कविता को शक्ति दे रहे हैं।
डॉ० अनिल गहलोत (मथुरा)
********
क्षणिकाएँ बहुत प्रभावी हैं। घर-घर में बड़े-बूढ़, बच्चे, युवा सबके पढ़ने लायक हैं।
दिलीप चन्द्रवंशी (हरदा)
********

क्षणिकाओं ने पूरे परिवार को गदगद कर दिया।
श्री ओ.पी.पंडित (पूर्व मैनेजर, देना बैंक)
********
क्षणिका संग्रह जैसे ही प्राप्त हुआ, पूरा पढ़कर ही छोड़ा ।
श्री अयर साहब (पूर्व मैनेजर, देना बैंक)
********
क्षणिकाओं के माध्यम से आप बहुत बड़ी समस्याएँ व्यंग्यात्मक ढंग से सहजता के साथ कह देते हैं।
प्रेम प्रकाश सचदेवा (मैनेजर, देना बैंक)

*********

क्षणिकाएँ सहज, सरल और बोधगम्य हैं।
श्री ए.के.रश्मि (राजभाषा अधिकारी, देना बैंक, मुम्बई)

**********


श्री रमेश कुमार भद्रावले की पुस्तक " शब्द प्राणायाम" छोटी-छोटी क्षणिकानुमा कविताओं का संग्रह है, यह पुस्तक इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि इण्टरनेट पर समग्र रूप से सचित्र कविताओं का यह पहला संग्रह है। इन कविताओं को आप प़ें और अपनी प्रतिक्रिया लिखकर रचनाकार को थोड़ा प्रोत्साहित करें ताकि वे पुनः सक्रियता के साथ फिर से अपने रचनाकर्म में जुट जायें। आपकी एक प्रतिक्रिया इस रचनाकार को नई ऊर्जा से भर देगी, प्रतीक्षा रहेगी आप सभी की प्रतिक्रियाओं की।

डा० जगदीश व्योम

**********

achha lagta hai jab kuchh naya samne aata hai
- आशा शैली

**********

ये लिन्क अवश्य देखें- 33- बहन

-लावण्या शाह


*************

लोकार्पण समारोह के कुछ चित्र




("शब्द प्राणायाम" पुस्तक के लोकार्पण समारोह के अवसर पर श्री अजातशत्रु, श्री सुभाष काबरा, डॉ॰ जगदीश व्योम एवं रचनाकार श्री रमेशकुमार भद्रावले)


08 January 2006

शब्द प्राणायाम - 108 - 113

108- पानी


पानी बचाओ
पानी बचाओ
का डंका,
आदमी बजा रहा है,
पानी बचाने वाला
सिर्फ
पसीने से नहा रहा है !














*********

109- बाढ़


खून आदमी का
ख़तरे के निशान से
कितना ऊपर
हो गया है,
क्रोध, आक्रोश
और मानसिक तनाव में
आदमी,
डूब गया है !

















********

110- पहुँच


लोमड़ी की तरह
आज तक बस
मतपेटी तक पहुँच पाये हैं,
हिस्से में हमेशा
आम नागरिक के
सिर्फ
खट्टे अंगूर आये हैं !


















********

111- सूखा


देश में
सूखा क्या पड़ गया,
आदमी का आज
पानी उड़ गया !















********

112- सूली


आज भी
उसे मालूम है
उस दिन भी उसे मालूम था,
कीलें बनाने,
और ठोकने वाला
सिर्फ
आदमी था !





















********

113- सज़ा


घिस-घिस कर
किसी दिन
ख़त्म हो जाती है,
मिटा देने की
सज़ा तो,
रबर भी पाती है !

















-रमेशकुमार भद्रावले



**********

शब्द प्राणायाम - 102 - 107

102- धरातल


आदमी के
आकलन का पैमाना
आज,
यू चलता है,
बड़ा वो है
जो ज़मीन पर नहीं,
परदे पर चलता है !



















*****


103- स्मृति


भुलावे की
कोई आँधी
नहीं बुझा पाती,
यादों की तुम्हारी
नन्हीं बाती !



















******


104- योग


परम्परा
ऋषि-मुनियों की
शब्द भी,
निभा रहे हैं,
योग और प्राणायाम से
भाषा को
समृद्ध और निरोगी
बना रहे हैं !




















*******


105- साधना


कड़ी मेहनत और
साधना में ढली
जेम्सवॉट की भाप को
बच्चों का खेल
मत बनाओ,
एक के पीछे एक आओ
रेल बनाओ, रेल बनाओ !



















*******



106- जुआँ


बन्दर की तरह
आपस में, माँ -बेटी
देखते-देखते जुआं
एक षड़यंत्र रच देती हैं,
दहेज के नाखूनों पर
जुआं की तरह
बहू को,
मसल देती हैं !



















*******


107- हैजा


हैजे की तरह
पाप और अत्याचार से
पृथ्वी,
जब त्रस्त हो गई,
निकलकर
जटाओं से गंगा
बाटल,
ग्लूकोज की हो गई !














-रमेशकुमार भद्रावले

**********



शब्द प्राणायाम - 96 - 101

96- मतदान

पन्द्रह दिन की
निराई-गुड़ाई में
वर्षो की
फ़सल पैदा करता है,
आज आदमी
खेत में नहीं,
चुनाव में मेहनत
करता है !



















******

97- सच्चाई - २


पाल कर कुत्ता
आदमी,
भौंकना तो सीख गया है,
वफादारी से
क्यों, आज
पीछे हट गया है !














*******


98- सायफन


पानी और आदमी का
पल-पल का साथ है
काश !
पानी का सिर्फ एक गुण
आदमी मे आ जाता,
आज,
आदमी, आदमी की सतह
बराबर कर पाता !













*******

99- बचाव


दिल तक
दुल्हन,
सास-ससुर के
पहुँच जाती है,
ज़िद करके बाप से
जब दहेज,
खूब लाती है !














********


100- लज्जा


लज्जा जैसा आभूषण
नारी का,
आज नहीं खोता,
यदि
साड़ी में
जेब होता !














*******


101- लकीरें



लक्ष्मण रेखा से
रेखाओं का सिलसिला
आज तक
चला आ रहा है,
ग़रीबी रेखा से
ग़रीब
बाहर ही नहीं आ रहा है !




















-रमेशकुमार भद्रावले
**********

शब्द प्राणायाम - 91 - 95

91- प्रगति


जाने क्यों आदमी
दिन को भी,
रात बना रहा है,
सूर्य की रोशनी मे भी
बिजली का बल्ब,
जला रहा है !
















*******


92- परिभाषा


प्रजात्रंत की भी
एक परिभाषा है,
पाँच साल का
अन्तर,
आदमी और नेता में
हो जाता है !















*******


93- गणेश चतुर्थी


गणेश चतुर्थी और
गणेश विसर्जन ने भी
आदमी को कुछ
सिखाया है,
प्रजातंत्र में
कुर्सी पर
बैठाने-उठाने का,
नया दौर चलाया है !













******


94- दुर्घटना


स्वार्थ ने,
मानवता का साँधा
बदल दिया है,
आज आदमी, आदमी की
पटरी से
उतर गया है !














*******


95- विकलांग वर्ष


लाठी भी
विकलांग वर्ष
मना रही है,
देकर सहारा
अन्धें को
चला रही है !
















-रमेशकुमार भद्रावले
*******

शब्द प्राणायाम - 86 - 90

86- बढ़ावा


भ्रष्ट,
राजनीति और नेता
देश को
किस तरफ ले जा रहे हैं,
बच्चे की तरह दूध
आतंकवाद को
पिला रहे हैं !


















*******


87- आशा


उन घरों में भी
कभी मौज मस्ती होगी
जिस दिन
आदमी की नहीं
शराब की,
मौत होगी !



















*******



88- दुर्लभ प्रजाति


देश में,
बिजली का टोटा
क्या हो गया,
आज
विलुप्त एवं दुर्लभ प्रजाति
कीड़ा,
बिजली का हो गया है !




















********


89- शर्म


हल्ला,
पानी बचाओ.....बचाओ का
उस तक भी
पहुँच गया,
बेचारा
बिना टोंटी का नल भी
बंद हो गया !



















*********


90- परख


कसौटी पर
परखने का रिवाज़
आदमी ने निकाला है,
आज तक,
आदमी-आदमी को
नहीं समझ पाया है !




















-रमेशकुमार भद्रावले

*******

05 January 2006

शब्द प्राणायाम - 81-85

81- जीत


गुलाल, माथे का
चिह्न, बनकर
दिल पर
उभर आता है,
तभी नेता
जनता के बीच
होली मनाता है !


















********


82- दर्शन


फूटकर अंडा
कितना उजाला
कर जाता है,
बाँग देकर मुर्गा
आज भी
सूरज को
जगाता है !


















********


83- शामिल


जाने दो,
बच्चा है, बूढ़ा है,
इस कतार को
आगे बढ़ाना होगा,
कुछ भी कर डाले
माफ हमें अब,
नेता को भी करना होगा !



















********


84- गंदी मछली


सूख कर
हज़ारों की
जान ले लेता है,
तालाब हमेशा
बदनाम,
मछली को करता है !


















*******


85- मतलब


पत्नी,
यहाँ अपंग 'त' को
अक्षर 'न', ने सँभाला है,
भाषा के लिये
अक्षरों को
विकलांग,
आदमी ने बनाया है !


















-रमेशकुमार भद्रावले

31 December 2005

शब्द प्राणायाम - 76 - 80

76- परम्परा


साधू के वेश में
सीता का हरण
क्या हो गया,
विश्वासघात के रावण का
आज,
चलन हो गया!




















77- सफाई


अफसर,
कितना ही बड़ा हो
झाडू तो लगायेगा,
कचरा चेहरे का
रोज़ सबुह
ब्लेड,
से हटायेगा !



















******


78- पानी-फेरना


मिटाने के लिए,
सदियों से
आदमी,
ठस-ठस पीता है,
रोटी खाकर
भूख पर
पानी,
फेरता है !




















*******


79- आँसू


नकल,
रोती आँखों की
वह भी
कर रहा है,
गर्मी में
बूँद-बूँद
नल,
टपक रहा है !




















*******


80- भाग्य


काश,
कड़वे बबूल में भी
भगवान, आम देता,
बो कर,
पेड़ कोई भी
आदमी,
फल मीठा खा लेता !



















-रमेश कुमार भद्रावले

********