66- पाखंड
धर्म की
पगडण्डी पर
आदमी,
भटक रहा है,
आज भी
आदमी, आदमी की
राह पर नहीं
चल रहा है !
*******
67- परिवर्तन
परिवर्तन को
आदमी ने
यूँ ढ़ाला है,
बारह माह से
पाले
कलेण्डर को
एक दिन की
जनवरी ने,
बदल डाला है!
******
68- दशहरा-२
रावण को मारकर
राम ने,
सीता को तो बचा लिया,
काश,
ऐसा कोई राम होता
जो आज,
आदमी में छिपे रावण को
मार पाता !
*********
69- दीपावली-२
दीपावली
आदमी, कुछ इस तरह से
मना रहा है,
अपने ही हाथों
अपने ही घर को
चूना,
लगा रहा है!
*******
70- क़ौमी एकता
आदमी से आदमी को
सजा लो,
गुलशन का हर एक
फूल लेकर
क़ौमी एकता का
आज एक
गुलदस्ता बनालो !
-रमेश कुमार भद्रावले
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धर्म की
पगडण्डी पर
आदमी,
भटक रहा है,
आज भी
आदमी, आदमी की
राह पर नहीं
चल रहा है !
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67- परिवर्तन
परिवर्तन को
आदमी ने
यूँ ढ़ाला है,
बारह माह से
पाले
कलेण्डर को
एक दिन की
जनवरी ने,
बदल डाला है!
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68- दशहरा-२
रावण को मारकर
राम ने,
सीता को तो बचा लिया,
काश,
ऐसा कोई राम होता
जो आज,
आदमी में छिपे रावण को
मार पाता !
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69- दीपावली-२
दीपावली
आदमी, कुछ इस तरह से
मना रहा है,
अपने ही हाथों
अपने ही घर को
चूना,
लगा रहा है!
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70- क़ौमी एकता
आदमी से आदमी को
सजा लो,
गुलशन का हर एक
फूल लेकर
क़ौमी एकता का
आज एक
गुलदस्ता बनालो !
-रमेश कुमार भद्रावले
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