18 December 2005

शब्द प्राणायाम- 01-05

01- प्राणायाम

घोंघा,
बीमारियों का
जीवन-समुद्र में
चलता है,
स्वास्थ्य जैसा
मोती,
योग और प्राणायाम की
सीपी में,
पलता है!



















02- अकाल

कुछ लोग
भूख से मर
रहे हैं,
कुछ
भूख के लिए
मर रहे हैं!





















03- रोटी

रोटी की ज़िन्दगी
आज,
कितनी कम हो गई,
बनी,
तवे पर चढ़ी
और
ख़त्म हो गई!



















04- सिकन्दर

दुनिया को
जीतने की धुन में
फिर एक
सिकन्दर निकल गया है,
हर चीज में झंडा
मिलावट का
गड़ गया है!




















05- सफलता

जाकर चाँद पर
आदमी,
मिट्टी ले आया है,
आज तक
आदमी, आदमी तक
नहीं पहुँच
पाया है!



















-रमेशकुमार भद्रावले





2 comments:

Arjun said...

jindgi hi jindgi ko tohfa hain ham yah mili yahi kaafi hain,....Arjun Sisodia

Shoonya Akankshi said...

सुन्दर विचार पूर्ण कविताएँ नई तरह से।
- शून्य आकांक्षी